एक विचार से एक आंदोलन तक
एक योगिक वैज्ञानिक और मानवतावादी के रूप में, मेरा उद्देश्य संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देना और लोगों को सनातन संस्कृति से जोड़ना है।
कोरोना महामारी (COVID) लॉकडाउन (LOCKDOWN) के दौरान, मैंने देखा कि कईयों के पास काम नहीं रहा, मजबूरी वश दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा है, और तो और लोगों को आवश्यक चिकित्सा सहायता नहीं मिल रही थी, विशेष रूप से आयुर्वेदिक दवाएं। इन दवाओं का निर्माण कठिन है, लाभ कम है, और सही तरीके से इन्हें बनाने वाले भी बहुत कम हैं। ऐसे में जो दवाए बन रही थी उसमे से कुछ लाभ कर रही थी कुछ नहीं इसीके चलते लोग इनपर मुख्य चिकित्सा पद्धति की तरह विश्वास नहीं दिखा पा रहे थे, और कुछ था आयुर्वेद के अच्छे चिकित्सकों का अभाव जो बता सकें कि औषधि का सही उपयोग करना कैसे है, ऐसे में सही गलत जो समझ में आ रहा था लोग उसे करते जा रहे थे जिसके चलते तब मैंने निश्चय किया कि चूँकि मुझे इस जानकारी है तो क्यों न मैं आनंदम आयुर्वेद के माध्यम से ऐसी दुर्लभ लेकिन अत्यंत लाभकारी दवाओं का निर्माण करूं, अगर कही भविष्य में कोई ऐसी आपदा आती है तो कम से कम आयुर्वेद के होते हुए लोगों को फ़िज़ूल में अपना जीवन न गवाना पड़े।
जब मैंने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया, तो महसूस किया कि कुछ अन्य लोग भी इस दिशा में कार्यरत हैं। लेकिन समस्या यह थी कि इन सभी को एक साथ जोड़ने का कोई समुचित मंच नहीं था।
मैंने सोचना शुरू किया कि आधुनिक युग में हम सभी को एक मंच पर कैसे लाया जाए, जिससे इस महान कार्य को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके। तभी मेरे मन में एक नए डिजिटल बाज़ार की अवधारणा आई।
संस्कृति बाज़ार से zaimboo तक की यात्रा
शुरुआत में मैंने इस प्लेटफॉर्म को \'संस्कृति बाज़ार\' के नाम से स्थापित किया, जिसका उद्देश्य स्वदेशी ब्रांड्स और आयुर्वेद, योग एवं पर्यावरण हितैषी उत्पादों को बढ़ावा देना था। हालाँकि, पहले से स्थापित मार्केटप्लेस कंपनियाँ इस विचारधारा के अनुरूप नहीं थीं। कई जगहों पर मैंने देखा कि देवी-देवताओं के चित्रों को अनुचित उत्पादों जैसे पायदान और चप्पलों आदि पर छापा जा रहा था, जिससे हमारी संस्कृति का अपमान हो रहा था। मुझे यह स्वीकार्य नहीं था। मैं किसी ऐसे बाज़ार का हिस्सा नहीं बनना चाहता था, जो हमारी संस्कृति और जीवन मूल्यों के विपरीत हो। इसलिए, मैंने स्वयं का एक स्वदेशी मार्केटप्लेस स्थापित करने का संकल्प लिया।
इस सफर में कई चुनौतियाँ आईं, धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा, असफलताओं से गुज़रना पड़ा, लेकिन अंततः हम लाखों लोगों तक आरोग्यकारी आयुर्वेदिक उत्पाद पहुँचाने में सफल हुए। आज, कई स्वदेशी ब्रांड्स हमारे साथ जुड़ चुके हैं और इस मिशन को सफल बना रहे हैं।
zaimboo: नाम और उद्देश्य
zaimboo केवल एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस नहीं, बल्कि एक संकल्प है—भारतीय संस्कृति और परंपराओं को विश्व के अंतिम छोर तक पहुँचाने का।
इस नाम का चयन भी एक विशेष विचारधारा के साथ किया गया। हमारे भारतवर्ष को प्राचीन काल में \'जंभूद्वीप\' कहा जाता था। मैंने इसी विचार से प्रेरित होकर \'zaimboo\' नाम रखा, ताकि हमारी मिट्टी की महक इस नाम में बनी रहे।
अंग्रेज़ी वर्णमाला के अंतिम अक्षर \'Z\' को आगे रखकर हमने यह संदेश देने का प्रयास किया कि समाज में जो सबसे पीछे छूट गए हैं, हम उन्हें सबसे आगे लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
स्वदेशी उत्पादों का वैश्विक विस्तार
zaimboo का लक्ष्य केवल भारत तक सीमित नहीं है। हमारा उद्देश्य है कि जो ब्रांड्स और लोग भारत की संस्कृति-संगत और इस से भी जरुरी मानव और मानवता का हित, इस धरती की रक्षा, पर्यावरण व जीवों की रक्षा जिस से हो ऐसे उत्पाद बना रहे हैं, उन्हें न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया तक पहुँचाया जाए। हमारा एक प्रमुख उद्देश्य यह भी है कि पारंपरिक शिल्प और कलाओं को पुनर्जीवित किया जाए, जिससे कारीगरों को उचित मूल्य मिले और वे गर्व से अपनी कला को आगे बढ़ा सकें। हम ऐसे उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं, जो धरती का दोहन करने के बजाय उसे पोषण दें।
Zaimboo Basecamp: एक संगठित प्रयास
दिल्ली में हमने Zaimboo Basecamp नाम से एक बैक-एंड कार्यालय स्थापित किया है, जहाँ एक समर्पित टीम इस मिशन को सफल बनाने में लगी हुई है। हमारा उद्देश्य केवल रोज़गार देना नहीं है, बल्कि एक अनुशासित और संस्कारित वातावरण प्रदान करना है, जहाँ नई पीढ़ी इस नए युग के लिए कार्य करे तो लेकिन हमारे पुराने जीवन मूल्यों को साथ लेकर।
एक नए युग की शुरुआत
बचपन से ही मुझे हमारे गुरुओं के जीवन ने अथाह प्रेरित किया। मेरे जीवन के शुरुआती वर्ष श्री अमृतसर के हरिमंदिर साहिब के पास योग, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की सेवा में व्यतीत हुए। वहाँ मैंने देखा कि किस प्रकार चौथे गुरु श्री गुरु राम दास जी महाराज ने विभिन्न कलाओं और व्यवसायों से जुड़े कारीगरों, व्यापारियों और शिल्पकारों को अमृतसर में बसने के लिए आमंत्रित किया, जिससे यहाँ सोने-चाँदी के गहनों, वस्त्रों और हस्तशिल्प के प्रसिद्ध बाज़ार विकसित हुए, जो आज भी अपनी समृद्ध विरासत को संजोए हुए हैं। आज, जब वह पारंपरिक बाज़ार सिमटते जा रहे हैं, हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने की आवश्यकता है। आधुनिक तकनीक के इस युग में, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता जो हमारी संस्कृति और कला को पुनर्जीवित कर सके।
आप कब जुड़ रहे हैं zaimboo से?
zaimboo केवल एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म या एक मार्केटप्लेस ही नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—भारतीय संस्कृति, स्वदेशी उद्योग व कृषि और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का। हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति, चाहे वह कृषक हो, कारीगर हो, निर्माता हो या उपभोक्ता, इस अभियान का हिस्सा बने। हमारा संकल्प है कि हम अपने स्वदेशी उत्पादों को विश्वभर में पहुँचाएँ और उन लोगों को आगे लाएँ, जो अब तक इस दौड़ में पीछे रह गए थे।
तो आइए, जुड़िए zaimboo से और इस स्वदेशी क्रांति का हिस्सा बनिए!
- नित्यानन्दम श्री