मैं आईना हूँ तुम मुझको देख न पाओगे..
जब भी देखोगे मेरी ओर तुम, बस खुद ही खुद को पाओगे..
मैं धारा हूँ तुम मुझे रोक न पाओगे..
जब भी रोकोगे मुझे, साथ तुम भी बह जाओगे..
मैं माटी हूँ पर तुम मुझे रोंद न पाओगे..
जब भी रोंदोगे मुझे तुम खुद माटी हो जाओगे..
मैं दीपक हूँ पर तुम मुझे बुझा न पाओगे..
जब भी बुझाओगे मुझे तुम खुद को रोशन पाओगे..
मैं मुक्ति हूँ तुम मुझे बाँध न पाओगे..
जब भी बाँधोगे मुझे तुम भी छूट जाओगे..
मैं सीढ़ी हूँ पर तुम मुझपे चढ़ न पाओगे..
चढ़ना होगा सफल पहले जब, सर्प से डंक खाओगे..
मैं वही अंक हूँ जिसे तुम कबसे हो खोज रहे..
बन जाओ शून्य पहले तुम, मुझमें ही जुड़ जाओगे..
बाकी कविता फिर कभी..